Pressure Calibration of Field Instruments

 

An Overview

Pressure calibration is one of the important processes in instrumentation and control engineering, and it makes sure that the field instruments, including pressure gauges, transmitters, and sensors, are used to take measurements accurately and reliably. The process simply compares the output of the instrument being tested against a reference standard whose pressuren  is known and very precise.

Why Pressure Calibration is Important
Accuracy: Ensures that the instrument measures pressure correctly, which is vital for process control and safety.
Compliance: Meets industry standards and regulatory requirements.
Performance: Improves the efficiency and reliability of process operations.
Safety: Reduces the risk of accidents caused by incorrect pressure readings.


Steps for Pressure Calibration
1. Preparation
Check Specifications: Review the instrument's operating range, accuracy, and calibration frequency as per manufacturer guidelines or process requirements.
Choose a Standard: Utilize a pressure calibrator or deadweight tester with an accuracy higher than the device under test.
Environmental Requirements: The temperature, humidity, and vibration should be stable so that there is no error.


2. Preparing Equipment
Isolate: The field instrument is removed from the process for the purpose of eliminating interference.
Connect:

Instrument: It is connected to the pressure calibrator through suitable fittings and tubing.
Teflon tape or thread sealant is used to prevent leaks.
Bleed Air: Make sure that all lines contain no air for correct adjustment.


3. Calibration Process
Zero Adjustment:
Inflate the instrument to pressure and zero adjust when allowed.
Apply Pressure:
Step all known pressure increments up with the calibrator at least to 0%, 25%, 50%, 75%, 100% of the range, respectively.
Record the data produced by the calibrator and DUT.
Hysteresis Check:
Decrease pressure incrementally to 0%, recording data to establish potential hysteresis present.
Repeatability Test:
Repeat the calibration procedure several times to achieve stable results.


4. Compensation (if necessary)
Compensating Correction: Modify the device settings when measurements are not in the expected range.
Span Compensating Correction: Calibrate the high end of the measuring range to match the accepted value.
5. Report
Calibration Certificate:
Note the instrument identification, date of calibration, information regarding the reference standard used, and measurements.
Traceability: Verify that the reference standard is traceable to a well-known authority such as NIST or NABL.
Static Pressure Calibration:
For devices measuring steady pressures, such as pressure gauges and transmitters.
Dynamic Pressure Calibration:
For devices used in fluctuating pressure environments, such as piezoelectric sensors.
Differential Pressure Calibration:
For devices measuring the difference between two pressure points.
Common Errors in Pressure Calibration
Connection Leaks: Can result in wrong readings.
Temperature Variations: The reference standard and DUT are affected differently.
Poor Setup: Misalignment or poor fittings can distort results.
Instrument Drift: Older instruments do not hold calibration for a long time.
Conclusion
Pressure calibration ensures the reliability and accuracy of field instruments, forming the backbone of process control systems. Proper calibration procedures, high-quality standards, and detailed records are essential to achieve optimal performance and compliance.

About Industrial Instrumentation ?




Industrial instrumentation is the use of devices and systems to measure, monitor, and control industrial processes. It is a crucial part that would make manufacturing, oil and gas, chemical processing, and power generation become efficient, safe, and reliable. Sensors, transducers, gauges, and controllers are some of the measuring instruments used to measure temperature, pressure, flow, level, and pH among others. These are sent forward to control systems, including PLCs or SCADA. And these in their turn drive the processes either directly in automatic control or else forward the information for the necessary man-in-the-loop interference. Automation and IoT progress enhance the accuracy and integration of the industrial instrumentation system.


ताजमहल का इतिहास और ताजमहल को तेजो महल क्यू कहा जा रहा है |

ताजमहल का इतिहास और ताजमहल को तेजो महल क्यू कहा जा रहा है |



ताजमहल, जिसे दुनिया के सात अजूबों में से एक माना जाता है, के बारे में कई कहानियाँ और अफवाहें प्रचलित हैं। विशेष रूप से इसके बंद दरवाजों और तहखानों को लेकर लोगों में काफी जिज्ञासा रही है। ताजमहल की सच्चाई और इसके बंद दरवाजों के रहस्य को समझने के लिए हमें इसके इतिहास और तथ्यों पर गौर करना होगा।

ताजमहल का इतिहास

ताजमहल को मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था। इसका निर्माण 1632 में शुरू हुआ और लगभग 1653 में पूरा हुआ। यह सफेद संगमरमर से बना एक भव्य मकबरा है, जो यमुना नदी के किनारे स्थित है और दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता है।

ताजमहल के बंद दरवाजे और तहखानों का रहस्य

ताजमहल के कुछ हिस्से, खासकर इसके निचले हिस्से में बंद दरवाजे और तहखाने हैं, जिनके बारे में कई तरह की बातें कही जाती हैं:

1.     सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा: ताजमहल के कुछ दरवाजे इसलिए बंद हैं क्योंकि वे संरचना की सुरक्षा और संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कुछ हिस्सों को बंद रखा है ताकि वहां किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ या नुकसान न हो सके।

2.     निर्माण तकनीक और कमजोर संरचना: कहा जाता है कि ताजमहल के तहखानों में नमी की समस्या हो सकती है, जो समय के साथ उसकी संरचना को नुकसान पहुंचा सकती है। इसे रोकने के लिए कुछ हिस्सों को बंद रखा गया है।

3.     आधुनिक काल की अफवाहें: ताजमहल के बंद दरवाजों को लेकर कई षड्यंत्रकारी सिद्धांत और अफवाहें भी फैली हुई हैं, जैसे कि वहाँ किसी अन्य धार्मिक स्थल के अवशेष छुपे हुए हैं। हालांकि, इन दावों का कोई ठोस प्रमाण नहीं है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इन्हें खारिज किया गया है। ताजमहल के बंद दरवाजों और तहखानों को लेकर जो रहस्य और कहानियाँ प्रचलित हैं, उनमें से अधिकांश केवल कल्पनाएँ और अफवाहें हैं। वास्तविकता यह है कि ताजमहल एक ऐतिहासिक धरोहर है, और इसके कुछ हिस्सों को सुरक्षा और संरक्षण के उद्देश्य से बंद रखा गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित सामग्री पढ़ी जा सकती है, जो प्रमाणिक जानकारी प्रदान करती है।

 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित प्रमुख सामग्री:

1.     "Monumental Marvels of India": इस पुस्तक में ASI द्वारा संरक्षित भारत के प्रमुख स्मारकों, जिनमें ताजमहल भी शामिल है, के इतिहास और संरचना का विस्तार से वर्णन किया गया है।

2.     "The Taj Mahal" (Conservation and Management): इस रिपोर्ट में ताजमहल के संरक्षण, प्रबंधन और इसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इसमें ताजमहल के निर्माण, स्थापत्य शैली, और इसके रखरखाव के उपायों पर चर्चा की गई है।

3.     "Annual Report of the Archaeological Survey of India": ASI हर साल एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जिसमें ताजमहल समेत भारत के अन्य स्मारकों के संरक्षण कार्य, ऐतिहासिक शोध और अन्य गतिविधियों का विवरण होता है।

4.     "The Wonder that is Taj": यह पुस्तक ताजमहल के इतिहास, स्थापत्य कला, और इससे जुड़ी कहानियों को प्रस्तुत करती है। इसमें ताजमहल के निर्माण के समय के ऐतिहासिक संदर्भ और इसके संरचना की बारीकियों को समझाया गया है।

ताजमहल के संरक्षण से जुड़ी जानकारी

ASI ताजमहल के संरचना और इतिहास की जानकारी देने के साथ-साथ इसके संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाओं और गतिविधियों की भी रिपोर्ट करती है। इनमें शामिल हैं:

  • संरक्षण योजना (Conservation Plan): ताजमहल की संरचना को बनाए रखने और उसकी खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए ASI ने कई योजनाएँ बनाई हैं। इनमें साफ-सफाई, मरम्मत, और संरचना के रखरखाव के लिए विभिन्न उपाय शामिल हैं।
  • पर्यावरणीय रिपोर्ट: ताजमहल के आसपास के वातावरण की स्थिति और इसे सुरक्षित रखने के लिए AS I द्वारा उठाए गए कदमों का वर्णन भी इन रिपोर्ट्स में किया गया है।

स्रोत तक पहुँच

इन सभी पुस्तकों और रिपोर्ट्स को आप ASI के वेबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं या भारत के प्रमुख पुस्तकालयों में जाकर देख सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ रिपोर्ट्स और सामग्री ASI की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी उपलब्ध हो सकती हैं।

 

ताज महल को अभी तेजो महल क्यों कहा जा रहा है

 

ताज महल को तेजो महल कहने का एक कारण यह है कि कुछ लोगों का मानना है कि ताज महल वास्तव में एक प्राचीन हिंदू मंदिर था, जिसे भगवान शिव को समर्पित किया गया था। यह विचार विशेष रूप से हिंदू राष्ट्रवादी समूहों और कुछ इतिहासकारों द्वारा प्रचारित किया गया है। उनका दावा है कि ताज महल के स्थान पर पहले एक शिव मंदिर था जिसे "तेजो महालय" कहा जाता था, और मुगल सम्राट शाहजहां ने इसे ध्वस्त करके ताज महल का निर्माण किया। हालांकि, इस विचार का समर्थन करने वाले प्रमाण बहुत ही विवादास्पद हैं और इसे व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है। मुख्यधारा के इतिहासकार और पुरातत्त्ववेत्ताओं का मानना है कि ताज महल शाहजहां द्वारा अपनी पत्नी मुमताज़ महल की स्मृति में बनवाया गया मकबरा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ये यस आई और अन्य आधिकारिक संस्थाओं ने भी इस दावे को खारिज किया है कि ताज महल के स्थान पर कोई हिंदू मंदिर था। इसलिए, "तेजो महालय" का विचार एक विवादित और अस्वीकार्य इतिहास पर आधारित है, जो अक्सर राजनीतिक और सांस्कृतिक एजेंडा के तहत प्रचारित किया जाता है।


बांग्लादेश में हिंसा के मुख्य कारण इस प्रकार है

 बांग्लादेश में हिंसा के मुख्य कारण इस प्रकार है 

राजनीतिक अस्थिरता:   बांग्लादेश में हिंसा के संदर्भ में "राजनीतिक अस्थिरता" का मतलब है कि देश की राजनीतिक प्रणाली और नेतृत्व में लगातार परिवर्तन, अस्थिरता, और अनिश्चितता बनी रहती है। इसका प्रभाव निम्नलिखित तरीकों से देखा जा सकता है:

Ø  सरकारों का बार-बार बदलना: बांग्लादेश में अक्सर राजनीतिक दलों के बीच गहरी असहमति होती है, जिसके कारण सरकारें बार-बार बदलती रहती हैं। यह स्थिरता को कमजोर करता है और प्रशासनिक कार्यों में रुकावटें आती हैं।

Ø  विरोध प्रदर्शन और हड़तालें: राजनीतिक अस्थिरता के कारण देश में विरोध प्रदर्शन, हड़तालें, और बंद आम हो जाते हैं। ये घटनाएं अक्सर हिंसक रूप ले लेती हैं और समाज में तनाव बढ़ा देती हैं।

Ø  ध्रुवीकृत राजनीति: बांग्लादेश की राजनीति में ध्रुवीकरण का प्रभाव देखा जाता है, जहां प्रमुख राजनीतिक दल और उनके समर्थक एक-दूसरे के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हैं। इससे समाज में विभाजन और संघर्ष बढ़ता है।

Ø  असंतोष और विद्रोह: राजनीतिक अस्थिरता के कारण जनता में असंतोष और नाराजगी बढ़ती है। यह असंतोष कभी-कभी हिंसक विद्रोहों और संघर्षों में बदल जाता है।

Ø  न्याय और सुरक्षा की कमजोर स्थिति: अस्थिर राजनीतिक वातावरण में न्यायिक प्रणाली और सुरक्षा बलों की भूमिका कमजोर हो सकती है, जिससे कानून और व्यवस्था को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। यह अपराध और हिंसा के बढ़ने का कारण बन सकता है।

इन सभी कारकों के परिणामस्वरूप, राजनीतिक अस्थिरता हिंसा को प्रोत्साहित करती है और देश के सामान्य नागरिकों के जीवन को प्रभावित करती है।

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            धार्मिक असहिष्णुता:   बांग्लादेश में हिंसा में धार्मिक असहिष्णुता का मतलब यह है कि वहां अलग-अलग धार्मिक समुदायों के बीच असहिष्णुता या असहनीयता बढ़ गई है। इसका मतलब यह है कि कुछ लोग या समूह दूसरे धर्मों के अनुयायियों को सहन नहीं करते, उनके प्रति नफरत या द्वेष रखते हैं, और यह असहिष्णुता हिंसा का रूप ले लेती है। 

धार्मिक असहिष्णुता के कारण बांग्लादेश में अक्सर अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले होते हैं, उनके धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुँचाया जाता है, और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला किया जाता है। इस प्रकार की असहिष्णुता सामाजिक और धार्मिक शांति को खतरे में डालती है, और समाज में तनाव और विभाजन पैदा करती है।

 आर्थिक असमानता:   बांग्लादेश में हिंसा के संदर्भ में आर्थिक असमानता का मतलब है कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आय और संपत्ति के वितरण में बड़ा अंतर होना। आर्थिक असमानता के कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं:

Ø  गरीबी और वंचना: समाज के एक बड़े हिस्से को बुनियादी जरूरतें जैसे भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, और रोजगार नहीं मिल पाता है, जबकि कुछ लोग अत्यधिक समृद्ध होते हैं। इस असमानता के चलते गरीब वर्ग में असंतोष और नाराजगी बढ़ती है।

Ø  सामाजिक असंतोष: जब समाज के एक हिस्से को लगता है कि वे आर्थिक अवसरों से वंचित हैं, तो उनके बीच सरकार और समाज के उच्च वर्गों के प्रति असंतोष बढ़ सकता है। यह असंतोष हिंसा का रूप ले सकता है।

Ø  अपराध और हिंसा: आर्थिक असमानता के कारण कुछ लोग अपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं, जैसे चोरी, डकैती, और अन्य हिंसक अपराध। यह असुरक्षा की भावना को बढ़ाता है और समाज में हिंसा फैल सकती है।

Ø  राजनीतिक अस्थिरता: आर्थिक असमानता से उत्पन्न असंतोष को राजनीतिक दल और समूह अपने फायदे के लिए भुना सकते हैं, जिससे समाज में तनाव और हिंसा का माहौल बन सकता है।

इस प्रकार, आर्थिक असमानता केवल आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का कारण भी बन सकती है, जो अंततः हिंसा को जन्म देती है।

सामाजिक तनाव:   बांग्लादेश में हिंसा के संदर्भ में सामाजिक तनाव का मतलब समाज के विभिन्न वर्गों, समूहों, या समुदायों के बीच व्याप्त तनाव और असंतोष से है। यह तनाव कई कारणों से उत्पन्न हो सकता है, जैसे:

Ø  धार्मिक भेदभाव: अलग-अलग धार्मिक समुदायों के बीच असहमति और भेदभाव सामाजिक तनाव का प्रमुख कारण हो सकता है। यह अक्सर धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले मामलों, धार्मिक असहिष्णुता, या धार्मिक अधिकारों के उल्लंघन से उत्पन्न होता है।

Ø  जातीय और सांस्कृतिक अंतर: विभिन्न जातीय समूहों या सांस्कृतिक समुदायों के बीच पहचान और संसाधनों के लिए संघर्ष भी सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है। यह अक्सर स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर हिंसक संघर्ष का कारण बनता है।

Ø  आर्थिक असमानता: समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आर्थिक संसाधनों और अवसरों की असमानता भी तनाव का एक स्रोत हो सकती है। जब एक वर्ग को लगता है कि उसके साथ अन्याय हो रहा है या उसके अवसरों को सीमित किया जा रहा है, तो यह असंतोष और हिंसा में परिवर्तित हो सकता है।

Ø  राजनीतिक ध्रुवीकरण: जब राजनीतिक दल या नेता समाज के विभिन्न समूहों के बीच विभाजन और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं, तो इससे भी सामाजिक तनाव बढ़ सकता है। यह विभाजन समाज में अस्थिरता और हिंसा का कारण बन सकता है।

सामाजिक तनाव तब और भी खतरनाक हो जाता है जब वह हिंसा में बदल जाता है, जिससे समाज में और अधिक अस्थिरता और विभाजन उत्पन्न होता है। बांग्लादेश में, इस प्रकार के तनाव कई बार विभिन्न हिंसक घटनाओं और संघर्षों के रूप में प्रकट हुए हैं।


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   आतंकी गतिविधियाँ:   बांग्लादेश में हिंसा के संदर्भ में "आतंकी गतिविधियाँ" का मतलब उन संगठनों या समूहों द्वारा की जाने वाली हिंसक और चरमपंथी गतिविधियों से है, जिनका उद्देश्य समाज में डर, अस्थिरता और अव्यवस्था फैलाना होता है। ये गतिविधियाँ धार्मिक, राजनीतिक, या वैचारिक उद्देश्यों से प्रेरित हो सकती हैं और इनमें निर्दोष लोगों पर हमले, बम धमाके, अपहरण, या अन्य प्रकार की हिंसा शामिल हो सकती हैं। आतंकी समूह अक्सर समाज में विभाजन और डर का माहौल बनाने की कोशिश करते हैं, ताकि वे अपने उद्देश्य को पूरा कर सकें। बांग्लादेश में ऐसे आतंकी समूह कभी-कभी बाहरी संगठनों से प्रेरित या समर्थित होते हैं, और इनका मकसद देश की सुरक्षा और स्थिरता को नुकसान पहुँचाना होता है। ये समूह सरकार, सुरक्षा बलों, या अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाते हैं और अपने कार्यों से सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की कोशिश करते हैं।

इन कारणों के अलावा, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे, पड़ोसी देशों के साथ संबंध, और आंतरिक सुरक्षा की कमी भी हिंसा के बढ़ने में योगदान देते हैं।